मखाना वैज्ञानिकों की टीम को किया गया सम्मानित



तीन दिवसीय मखाना-जलीय कृषि के साथ जलजमाव वाले पारिस्थितिकी तंत्र के उपयोग पर राष्ट्रीय सम्मेलन चुनौतियाँ एवं रणनीतियाँ कार्यक्रम के अवसर पर डाॅ॰ संजय कुमार सिंह, उप महानिदेशक बागवानी विज्ञान, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा मखाना नुसंधान एवं विकास में मुख्य भूमिका निभाने वाले मखाना वैज्ञानिकों की टीम प्रधान अन्वेषक, मखाना अनुसंधान परियोजना मखाना विकास योजना, डा. अनिल कुमार, सहायक प्राध्यापक-सह-कनीय वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान) डा. पंकज कुमार यादव, विश्वविद्यालय प्राध्यापक-सह-मुख्य वैज्ञानिक कीट विज्ञान एवं वर्तमान प्राचार्य डाॅ॰ पारस नथ, पूर्व प्राचार्य डाॅ॰ राजेश कुमार, एवं  तत्कालीन अघ्यक्ष उद्यान (फल एवं फल प्रौ.) डाॅ॰ विश्व बन्धु पटेल, वर्तमान सहायक महानिदेशक फसल एवं रोपण फसलें, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली को विगत 12 वर्षों में मखाना अनुसंधान, शिक्षण, प्रसार एवं प्रशिक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए प्रमाण पत्र देकर विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया। भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय के लिए ही नहीं बल्कि पुरे मिथिलांचल,सिमांचल एवं कोसी अंचल के निवसियों के साथ-साथ मखाना उत्पादकों, प्रसंसस्करण कर्ताओ एवं अन्य हितधराकों के लिए गौरव की बात है कि विगत कई वर्षों के निरंतर अथक प्रयासों के बाद सबौर मखाना-1 उन्नतशील प्रजाति का विकास हुआ है। मखाना विकास योजना के अंतर्गत क्षेत्र विस्तार एवं उन्नतशील प्रजाति के प्रत्यक्षण से किसानों को 12-15 प्रति हेक्टेयर अतिरिक्त मखाना बीज का उपज प्राप्त हुआ है। विगत 5 से 7 वर्षों में मखाना उत्पादन के साथ ही साथ जलजमाव क्षेत्रों की उत्पादन, उत्पादकता एवं लाभप्रदता में वृद्धि हुई है। वर्ष 2016 और 2019 में क्रमशः राज्य किस्म विमोचन समिति (एस वी आर सी) बिहार सरकार और केंद्रीय किस्म विमोचन समिति (सी.वी.आर.सी), भारत सरकार द्वारा पहली अधिसूचित मखाना किस्म “सबौर मखाना-1 (आईसी नंबर-620551)” विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सबौर मखाना-1 की मांग मिथिलांचल, कोसी, सिमांचल के साथ राष्ट्रीय स्तर पर देश के अन्य राज्यो जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर, छत्तीसगढ़ के धमतरी, मणिपुर  के इम्फाल जिले में भी उन्नतशील प्रजाति सबौर मखाना-1 की मांग बढ़ी है। मखाना अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के परिणाम स्वरूप मखाना की उन्नतशील प्रजाति ”सबौर मखाना-1” के अतिरिक्त विभिन्न तकनीक विकसित की गई है। जैसे मखाना उत्पादन तकनीकी, मखाना फसल में कीट एवं व्याधि प्रबंधन, मखाना आधारित फसल प्रणाली की तकनीक के विकास के साथ-साथ मखाना (जिसे जंगली फसल के रूप मे जाना जाता था) को एक व्यवसायिक फसल का दर्जा प्रदान कराने के साथ-साथ बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के स्नातक एवं स्नातकोत्तर कृषि शिक्षा अंतर्गत उद्यान विज्ञान विभाग के पाठ्यक्रम में नया मूल्यवर्धित पाठ्यक्रम “गॉर्गन नट (मखाना) की उत्पादन तकनीक, कोर्स कोड- एएचटी-225, क्रेडिट एचआर-2 (1़1)” विकसित कर सम्मिलित कराया गया। कृषि स्नातक छात्र-छात्राओ में उद्यमिता विकास के लिए मखाना आधारित एक्सपेरियंशियल लर्निंग परियोजना चलायी जा रही है ताकि मखाना आधारित उद्यमिता विकास के माध्यम से छात्र-छात्राएँ जाॅब सीकर न बनकर जाॅब क्रीएटर बन सके। इसका फलाफल अब मिल रहा है। 

पहली बार, जॉब रोल मखाना उत्पादक-सह-प्रसंस्करणकर्ता राष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण केंद्र बीएसडीएम, बिहार द्वारा कार्यान्वित पीएम के वी वाई के राज्य घटक के तहत बीपीएसएसी, पूर्णिया में विकसित किया गया। मास्टर ट्रेनर के रूप में मखाना उत्पादकों सह-प्रसंस्करणकर्ताओं के लिए राष्ट्रीय स्तर का योग्यता पैक (क्यूपी) विकसित किया गया, जिसे भारतीय कृषि परिषद द्वारा मान्यता दी गई और राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी द्वारा नोडल केंद्र के रूप में अनुमोदित किया गया। विगत वर्षों में राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न सरकारी संस्थानों जैसे राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान, जयपुर, एपीडा एवं उद्यमियों के साथ 400 से अधिक कार्यशाला, प्रशिक्षण, प्रक्षेत्र दिवस आदि कार्यक्रम आयोजित कर किसानों को जागरूक कर मखाना उद्योग में व्याप्त एकाधिकार को काफी हद तक कम किया गया है। दशकों पूर्व मखाना उत्पादकों को बीज का न्यूनतम एवं अधिकतम मूल्य क्रमशः रू. 20-35 एवं रू. 65-70 प्रति किग्रा ही मिलता था, जबकि अब बीज का न्यूनतम एवं अधिकतम मूल्य क्रमशः 90-100 एवं 175-180 प्रति किग्रा की दर से मिल रहा है। अर्थात् मखाना उत्पादकों को मखाना बीज गुर्री के विक्रय से तीन गुना लाभ मिल रहा है, जिससे उनकी आर्थिक उन्नति हुई है।

  

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