बरारी के 350 वर्ष पुराने श्री भगवती मंदिर में उमड़े श्रद्धालु, दशहरा मेला में आस्था और उल्लास का संगम

बरारी कटिहार से नीलम कौर की रिपोर्ट


माँ भगवती की पूजा से मनोकामना पूर्ण होती है। बिना फूलायस के विसर्जन नहीं होता। माता के फूलायस से उसी दिशा में कलश विसर्जन होता है। शेरशाह सूरी ने बंगाल विजय के लिए मांगी थी दुआएं। विजय होते ही चढ़ावा चढ़ाया। 350 वर्ष प्राचीन है माता का दरबार।

कटिहार जिला के बरारी प्रखंड का ऐतिहासिक एवं प्राचीन श्री भगवती मंदिर सच्चे मन से दुःख से पीड़ित की हर मनोकामना पूरी करता है। प्रातः तीन बजे से मंदिर में घंटा बजते ही श्रद्धालु पहुंचने लगते हैं। 350 वर्ष प्राचीन इस भगवती मंदिर में बलि चढ़ाने की भी प्रथा थी, जिसे बाद में बंद कर दिया गया। मंदिर परिसर में माँ दुर्गा की प्रतिमा के साथ माता सरस्वती, बजरंगबली, महादेव शिवलिंग एवं माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के मुख्य पुजारी वेदाचार्य पुरुषोत्तम झा बताते हैं कि माता के दरबार में जो भी आया, कभी खाली हाथ वापस नहीं गया। माता की शक्ति जन-जन के लिए है। निष्ठा, विश्वास और श्रद्धाभाव से की गई आराधना से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है।


दशमी पूजा के दिन संध्या में पूजा-अर्चना उपरांत विसर्जन के लिए माता की इजाजत ली जाती है, जिसमें फूलायस कराया जाता है। फूलायस जिस दिशा में होता है, उसी दिशा में विसर्जन की प्रक्रिया पूरी विधि-विधान से पूरी की जाती है। विसर्जन के समय मंदिर से लेकर गंगा-दर्जलिंग सड़क तक काफी भीड़ जमा रहती है। एक बार विसर्जन कलश को स्पर्श कर आशीष लेने की होड़ लगी रहती है। इस समय मंदिर समिति एवं प्रशासन के लोग काफी मुस्तैदी के साथ लगे रहते हैं।


माता का पट खुलते ही अष्टमी और नवमी को सुबह से आराधना करने वालों की भीड़ लगी रहती है। यहाँ व्यापक रूप से मेला का आयोजन किया जाता है, जिसमें आकर्षक झूला, ड्रैगन ट्रेन, म्यूजिकल चेयर रेस, मौत का कुआं आदि कई प्रकार की सैकड़ों दुकानें सज जाती हैं। मंदिर न्यास समिति के पदेन अध्यक्ष अंचल पदाधिकारी होते हैं। मंदिर न्यास समिति के उपाध्यक्ष कौशल किशोर यादव, सचिव विश्वदीपक भगवती उर्फ पंकज यादव, उपसचिव धनजीत यादव, कोषाध्यक्ष मुकेश झा बताते हैं कि साढ़े तीन सौ वर्षों से यह मंदिर बरारी की धरती पर आस्था का केन्द्र है। पूर्व में मंदिर बरारी बस्ती, जो वर्तमान में तेरासी टोला है, वहाँ अवस्थित था।


बताया जाता है कि शेरशाह सूरी बंगाल विजय के लिए काढ़ागोला गंगा-दर्जलिंग सड़क से जाने के क्रम में बरारी में भीड़ देखकर सेनापति को कारण जानने भेजा। सेनापति ने सूरी को बताया कि मनोकामना पूर्ण होने पर लोग चढ़ावा चढ़ाने आए हैं। तब शेरशाह ने माता से बंगाल विजय की मनोकामना की। विजय के बाद उन्होंने चढ़ावा चढ़ाया। कई ऐसी प्राचीन कथाएं माता के दरबार से जुड़ी हैं, जो श्रद्धालुओं को आस्था से जोड़ती हैं।


पूरे क्षेत्र में दशहरा पूजा में भव्य मेला का आयोजन होता है। कई प्रखंडों के लोग आज भी यहाँ मेला देखने एवं आराधना करने आते हैं। दशहरा पूजा को सफलतापूर्वक कराने को लेकर मंदिर न्यास समिति के पदाधिकारी एवं सदस्य विनोद भारती, विवेकानंद झा, संदीप कुमार, सदरी यादव, दिवाकर प्रशासन के सहयोग से जुटे हुए हैं। बड़े मैदान में बरारी हाट पर मेला सजने लगा है। आकर्षक झूले आदि भी सज गए हैं। अष्टमी से उमड़ेगी भीड़।

  

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