सरिसवा नदी को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने को लेकर वीरगंज उद्योग वाणिज्य संघ के अध्यक्ष से मिले डॉ. शलभ

जिन उद्योगों के द्वारा एफ्लुएंट नदी में गिराये जाते हैं उन उद्योगों में अनिवार्य रूप से एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट लगाने और नियमित रूप से संचालित किए जाने की कवायद

बीरगंज उद्योग वाणिज्य संघ की बैठक में होगी इस मुद्दे पर विशेष चर्चा

रक्सौल-सरिसवा/सिर्सिया नदी को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने को लेकर शिक्षाविद प्रो. (डॉ.) स्वयंभू शलभ ने बीते गुरुवार को वीरगंज उद्योग वाणिज्य संघ कार्यालय में अध्यक्ष डॉ. सुबोध कुमार गुप्ता से मुलाकात कर इस नदी के प्रदूषण को लेकर सेंट्रल वाटर कमीशन, नमामि गंगे, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के साथ एक ज्ञापन पत्र सौंपा। 

डॉ. शलभ ने जोशीमठ की घटना का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रकृति एक सीमा तक ही दोहन बर्दास्त कर पाती है। औद्योगिक प्रदूषण के कारण भारत नेपाल का यह सीमावर्ती क्षेत्र भी पारिस्थितिक असंतुलन की ओर बढ़ रहा है। इसे रोका न गया तो सीमावर्ती क्षेत्र के भूगर्भ जल में भी इसका असर आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

अध्यक्ष श्री गुप्ता ने नदी में अपशिष्ट डालने वाले उद्योगों पर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की अनिवार्यता सुनिश्चित करने की दिशा में कारगर कदम उठाने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए उद्योगपतियों के साथ होने वाली मीटिंग में ज्ञापन के विंदुओं पर चर्चा कर उचित समाधान निकालने की बात कही। श्री गुप्ता ने रक्सौल और वीरगंज नगरक्षेत्र के उन नालों के पानी को भी ट्रीट किये जाने का विषय उठाया जो सीधे नदी में गिराये जाते हैं। डॉ. शलभ ने बताया कि इसके लिए रक्सौल में एसटीपी की स्वीकृति मिल चुकी है। वीरगंज महानगरपालिका से गिरने वाले नालों में एसटीपी लगाने को लेकर वीरगंज नगर प्रमुख राजेशमान सिंह जी से बात हुई है। वे इस समस्या को लेकर गंभीर हैं और महानगरपालिका द्वारा हर आवश्यक कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। श्री गुप्ता ने नदी को स्वच्छ बनाये जाने को लेकर कुछ अन्य विकल्पों पर भी चर्चा की।

डॉ. शलभ ने कहा कि सभी उद्योग अपने प्लांट की क्षमता के अनुसार ट्रीटमेंट प्लांट लगाएं और नियमित रूप से संचालित करें तभी इस समस्या का अंत होगा। यहाँ मुख्य समस्या उन जहरीले अपशिष्टों को ट्रीट करने की है जिन्हें अपने साथ लेकर यह नदी नेपाल से रक्सौल (भारत) में प्रवेश करती है और बूढ़ी गंडक के रास्ते गंगा तक को प्रदूषित करती है। इस नदी पर बिहार में कहीं भी औद्योगिक प्रदूषण का लोड नहीं है। इस प्रमुख स्रोत को स्वच्छ किये बगैर गंगा को भी स्वच्छ नहीं किया जा सकता।

  

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