पीएचसी से रेफर मरीज को सील बंद क्लीनिक पर लेकर पहुंचा सरकारी एम्बुलेंस, स्वास्थ्य विभाग बेखबर


सीतामढ़ी से अविनाश कुमार की रिपोर्ट

कहावत है की कुत्ते की पूंछ को 9 माह तक तेल के टीन में घुसा कर छोड़ दिया जाए फिर भी वह निकलने के बाद टेढ़ी की ठेढ़ी ही रहेगी। वैसा ही कुछ हाल जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था का है। सरकार कितना भी कुछ कर ले परंतु कुछ स्वास्थ्य कर्मी व्यवस्था ही इसका नाश करने में लगे रहते है। कही चिकित्सक की लापरवाही तो कही कर्मियों की लापरवाही से कुछ न कुछ घटनाएं घटित होती रहती है। हद तो तब होती है जब आउटसोर्सिंग से बहाल एंबुलेंस चालक भी निजी क्लिनिको की दलाली शुरू कर देते है। ताजा मामला गुरुवार की देर रात का है। जब बाजपट्टी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से एक महिला मरीज गुड़िया कुमारी को सदर अस्पताल सीतामढी रेफर किया गया। मरीज को सांस लेने में परेशानी थी। परंतु एंबुलेंस चालक उस मरीज को लेकर रिंग बांध स्थित एक निजी क्लिनिक में पहुंचा। वह भी वैसे क्लीनिक में जो पिछले 15 , 20 दिनों से सील है। कारण था की वह क्लीनिक न निबंधित था और न वहां कोई डिग्रीधारी चिकित्सक है।  मैं बात कर रहा हुं मां जनक नंदनी हॉस्पिटल का। वर्तमान में उनके द्वारा चोरी छुपे दूसरे दरवाजे से इलाज किया जा रहा है। एंबुलेंस के पहुंचते ही एक मीडिया कर्मी की नजर 102 एंबुलेंस पर पड़ी। जब उसने कैमरा निकाल इसकी तस्वीर लेने लगा तो चालक गाड़ी घुमा कर भागने लगा। जब मीडियाकर्मी ने चालक से पूछताछ शुरू किया तो वह अपने नौकरी का हवाला देकर गिरगिराने लगा। उसने बताया कि सदर रेफर किया गया है। परंतु मरीज के परिजन के कहने पर यहां लाया हूं। फिर वह मरीज को लेकर सदर अस्पताल पहुंचा। अब सवाल उठता है कि सरकार के द्वारा बड़ी राशि खर्च कर व्यवस्था को सुधारा जा रहा है। परंतु इस तरह के लोग व्यवस्था सुधरने नही देंगे। जबकि माने तो किसी भी निजी क्लिनिक से बेहतर व्यवस्था सदर अस्पताल में  कर दी गई है परंतु कमीशन के चक्कर में कुछ कर्मी या एंबुलेंस के चालक के द्वारा निजी क्लिनिको में मरीजों को पहुंचा दिया जाता है।

  

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