

आयोडीन युक्त नमक के इस्तेमाल से रोग से मिलेगा छुटकारा
- by Raushan Pratyek Media
- 11-Feb-2025
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भारत में नमक के आयोडीनीकरण से जुड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल 1950 के साथ दशक में शुरू हुई थी, जो आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों (आईडीडी) से निपटने के लिए आयोडीन को शामिल करने से संबंधित थी। हालांकि, 1960 के दशक में कांगड़ा घाटी परियोजना (हिमाचल प्रदेश) की सफलता ने सर्वत्र व्याप्त नमक आयोडीनीकरण (यूनिवर्सल साल्ट आयोडायज़ेशन-यूएसआई) और 1992 में इसके आधिकारिक लॉन्च की बुनियाद रखी। इस परियोजना ने साबित किया कि गॉयटर आयोडीन की कमी के कारण होता है। इस परियोजना से यह भी सामने आया कि पोटेशियम आयोडेट के इस्तेमाल से तैयार आयोडीन युक्त नमक सबसे प्रभावी और किफायती समाधान है।
यह पहल दशकों से चल रही है, जिसके तहत सरकारी निकायों, गैर सरकारी संगठनों और शोध संस्थानों के बीच नमक के आयोडीनीकरण के ज़रिये देश भर में आईडीडी को कम करने के लिए मिल कर काम कर रहे हैं। राष्ट्र निर्माण की दिशा में ऐसी ही एक महत्वपूर्ण साझेदारी टाटा साल्ट की रही है जो अग्रणी आयोडीन युक्त नमक ब्रांड के रूप में 1983 में अपनी स्थापना के बाद से आयोडीन की कमी से जुड़े विकारों (आईडीडी) के खिलाफ देश के संघर्ष से गहराई से जुड़ी हुई है। सूक्ष्म पोषक तत्वों में कम मात्रा में विटामिन तथा मिनरल शामिल होते हैं और वे बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और दुख की बात है कि भारत में आबादी के एक बड़े हिस्से को आहार संबंधी सीमाओं या जागरूकता की कमी के कारण आहार के ज़रिये इन विटामिन और मिनरल की पर्याप्त मात्रा हासिल करने के लिए जूझना पड़ता है। इसकी वजह से बहुत तरह की कमियां होती है। ऐसे में नमक के फोर्टिफिकेशन से देश भर में पोषक तत्वों के सेवन में बढ़ोतरी के लिए आयोडीन और आयरन जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति हो सकती है।
टाटा साल्ट इम्यूनो जैसा आयोडीन युक्त नमक कम मात्रा के बावजूद इन महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों के लगातार सेवन में मदद करता है, क्योंकि नमक एक बुनियादी आवश्यकता है जिसे लगभग हर खाद्य पदार्थ में डाला जाता है।

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