श्रीराम कथा में सीता विदाई प्रसंग में श्रद्धालु हुए भाव विभोर।

मीडिया दर्शन/मुंगेर।




अयोध्या मे 22 जनवरी को हुए प्राण प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में तारापुर नगर के धौनी वार्ड नं -15 में सप्तदिवसी श्रीराम कथा में पूज्य स्वामी श्री देवकीनंदन भारद्वाज जी महाराज के मुखारविंद से आयोजित सप्त दिवसीय श्री राम कथा के रविवार को कथा के छठे दिवस में महाराज जी ने गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के बालकांड में वर्णित जनकपुर से विवाहोपरांत माता सीता जी की विदाई,अयोध्या में राजा दशरथ की चारों पुत्र वधुओं का स्वागत व दासी मंथरा तथा कैकई के कुटिल नीति के संवाद का वर्णन किया।



रामायण जी की सुंदर चौपाइयां सुनकर श्रोता भाव विभोर नजर आए।कथा के माध्यम से महाराज  ने कहा कि बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर प्राप्त होता है। मनुष्य शरीर देवताओं के लिए भी दुर्लभ माना गया है।मनुष्य शरीर की सार्थकता सत्संग व साधना करने में ही है।ऐसा विश्वास करना चाहिए कि सत्संग से सभी दुख नष्ट हो जाते हैं।यह मानव शरीर सत्संग और ध्यान करने का घर व मोक्ष का द्वार है।मनुष्य शरीर परमात्मा का ही अंश है और सत्संग व साधना करके इसी मनुष्य शरीर से परमात्मा पद को प्राप्त किया जा सकता है।सत्संग से संस्कार कभी खत्म नहीं होता है।सच्चे संत के दर्शन मात्र से मन का मैल समाप्त हो जाता है।संतो के उपदेश पर चलने पर ही कल्याण संभव है।स्वामी संतोष बाबा ने कहा कि संत,सतगुरु कामधेनु व कल्पतरु रूप के समान सभी मनोरथ पूर्ण करने वाले होते हैं।मुरलीधर महाराज  ने कहा कि श्रीराम कथा विश्वकल्याणदायनी है। 


यही वजह है कि श्रीरामचरित मानस में गुरु,माता-पिता, पुत्र-पुत्री,भाई,मित्र,पति-पत्नी आदि का कर्तव्य बोध एवं सदाचरण की सीख हमें सर्वत्र मिलती है।

  

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